Monday, August 26, 2013

An Intimate Conversation with Sarojini Sahoo

“When your novel The Dark Abode (Gambhiri Ghara in Odia), first published in Odisha, it was asserted as an obscene one by some groups of readers and critics. But later this novel was translated into English, Hindi, Bengali and Malayalam and was much acclaimed. Do you think Odia readers are lacking of good readership?” asked Dr. Meena Soni, an avant garde writer of Hindi in a published interview.



(Dr. Meena Soni)                         (Dr. Sarojini Sahoo)


And below is my answer:

मीना: आप का चर्चित उपन्यास गंभीरी घर विभिन्न भाषाओं में अनुदित हुआ है. हिंदी में बन्द कमरा शीर्षक से प्रकाशित हुआ है. इसके अलावा अंग्रेज़ी, मलयालम, तथा बांग्लादेश से बांग्ला में प्रकाशित हो कर देश -विदेश में लोकप्रिय हुआ है. पर जब ओड़िया में उसका प्रकाशन हुआ था तब उसे ‘अश्लील’ करार दिया गया. क्या आप मानती हैं कि ओड़िया पाठकों में कुछ कमी है जो उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक नहीं पहुँचने देता?

सरोजिनी: ऐसा नहीं है कि ओड़िया पाठक ने उसे नकारा है. आज भी गंभीरी घर एक बेस्ट सेलर माना जाता है. ओड़िया साहित्य से परिचित ऐसा कोई भी न होगा जिसने मेरा वह उपन्यास न पढ़ा हो. असल में उपन्यास में सेक्स को गौरवान्वित कभी नहीं किया गया है. यह वस्तुतः एक सेक्स- विरोधी उपन्यास है, जिसमें सेक्स से ऊपर उठकर प्रेम को पहचानने की बात कही गयी है. उपन्यास का दुसरा केंद्र-बिन्दु है आतंकवाद. माइक्रो से मैक्रो लेवल में कैसे आतंकवाद मानव को एक असहाय खिलौना बना देता है, उसका वर्णन है. इन सारी बातों को अनदेखा कर जो मेरे उपन्यास में अश्लीलता ढूँढते हैं, उन्हें क्या कह सकती हूँ?

मीना: गंभीरी घर उपन्यास दरअसल एक पाकिस्तानी मुस्लिम चित्रकार और भारतीय गृहिणी महिला के बीच इन्टरनेट के जरिये पनपे प्यार की कहानी है जिसपर हिन्दूवादी संगठनों ने एतराज भी जताया है. इस प्रसंग पर आपका क्या कहना है?

सरोजिनी: फंडामेंटलिज़्म हमारी सोच को इतना घटिया बना देता है कि हम किसी भी सुन्दर चीज को अपने सांप्रदायिक-स्वार्थ से ऊपर उठकर नहीं देख पाते. जब गंभीरी घर का बांग्ला अनुवाद बांग्लादेश में लोकप्रिय होने लगा तब ओडिशा के अध्यात्मिक गुरु बनने का ढोंग रचने वाले एक प्रमुख साहित्यकार ने मुझसे प्रश्न किया था कि क्या अगर नायक हिन्दू और नायिका मुसलमान होती तो क्या यह उपन्यास बांग्लादेश में इतना लोकप्रिय होता? अब इन्हें कौन बताये कि उपन्यास लिखते समय यह प्रश्न कदापि मेरे मन में नहीं आया था कि नायक और नायिका का धर्म क्या होना चाहिए. दो देशों के बीच कटुता के माहौल में भी प्रेम का बीज उग सकता है- यही था प्रमुख थीम जो आगे चलकर राष्ट्र बनाम व्यक्ति के प्रश्न पर उलझ गया.


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